15 October 2010

विजयपथ

वो नाव क्या, नाविक ही क्या - जब धारा प्रतिकूल न हो !
वो जीव क्या, जीवन ही क्या - जब आशाएँ भरपूर न हो !

वो मन क्या, मानव ही क्या - जब हौसला प्रचूर न हो !
वो राह क्या, राहगीर ही क्या - जब कांटें और शूल न हो !

 हौसला अगर अटूट है, तो फिर क्या बाधा है !
लक्ष्य अगर अडिग है, श्रम इतिहास की गाथा है !

कर लो आलिंगन अवसर का, कब वक़्त बदल फिर जायेगा!
कभी धुप है कभी छाँव है, फिर साँझ रात बन जाएगा !

फिर चाहे सुनामी हो, चाहे मुंबई में पानी हो!
फिर गुजरात में भूकंप उठे और सूखे का प्रकम्प जुटे!

अपने इरादे बुलंद करो, हौसले की मुट्ठी बंद करो!
तब तेज ललाट प्रखर होगा, और भाग्य विजय शिखर होगा !

है विजय का पथ यही!
जीवन का उद्देइश्य सही !!